Thursday, May 14, 2015

kabir ke dohe 7

कबीर हरि के रुठते, गुरु के शरणै जाय । कहै कबीर गुरु रुठते , हरि नहि होत सहाय ।। गुरु पारस को अन्तरो , जानत हैं सब संत । वह लोहा कंचन करे , ये करि लेय महंत ।। http://kabirsahib.blogspot.in/p/blog-page_3.html

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