Saturday, August 15, 2015

अजब इत्तिफ़ाक़ है

दूरियां नज़दीकियां बन गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है कह डालीं कितनी बातें अनकही अजब इत्तिफ़ाक़ है ऐसी मिली दो निगाहें मिलती हैं जैसे दो राहें जाएगी ये उल्फत पुरानी गाने लगी हैं फ़िज़ाएं प्यार की शहनाइयां बज गयी अजब इत्तिफ़ाक़ हैं एक डगर पे मिले हैं हम तुम तुम-हम दो साये ऐसा लगा तुमसे मिलकर दिन बचपन के आये वादियाँ उम्मीद की सज गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है पहले कभी अजनबी थे अब तो मेरी ज़िन्दगी हो सपनों में देखा था जिसको साथी पुराने तुम ही हो बस्तियां अरमां की बस गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है