Friday, December 27, 2013

From Upanishad उपनिषद् I

हरिः ॐ।
ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद् भविष्यदिति
 सर्वमोङ्कार एव यच्चान्यत् त्रिकालातीतं तदप्योङ्कार एव॥

 [- माण्डूक्य उपनिषद् १]


Hari Om. Aum, the word, is all this. A clear explanation of it is: All that is past, present, and future, verily, is Aum. That which is beyond the three periods of time is also indeed Aum.
   हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌ । तत्‌ त्वम्‌ पूषन्‌ अपावृणु सत्य धर्माय दृष्ट्ये ॥
 हे प्रभु ! सांसारिक चमक-दमक व सांसारिक सुखद आकर्षणों से सत्य का मुख ढका हुआ है । हे प्रकाशमान सर्वपोषक ! उस भौतिक आकर्षण के पर्दे को हटाओ ताकि मुझे सत्य धर्म का ज्ञान प्राप्त हो सके और मैं परम सत्य को देख सकूँ !
यह श्लोक ईशोपनिषद से है।ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूणात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ3 खं ब्रह्म खं पुराणं वायुरं खमिति ह स्माह कौर व्यायणीपुत्रों वेदो यें ब्राह्मण विदुर्वेदैनेन यद्वेदितव्यम्॥1॥'
अर्थात वह ब्रह्मण पूर्ण है, यह जगती पूर्ण है। उस पूर्व ब्रह्म से ही यह पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है। उस पूर्ण ब्रह्म में से इस पूर्ण जगत को निकाल लेने पर पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है। ॐ अक्षर से सम्बोधित अनन्त आकाश या परम व्योम ब्रह्म ही है। यह आकाश सनातन परमात्म-रूप है। जिस आकाश में वायु विचरण करता है, वह आकाश ही ब्रह्म है। ऐसा कौरव्यायणी पुत्र का कथन है। यह ओंकार-स्वरूप ब्रह्म ही 
वेद है। इस प्रकार सभी ज्ञानी ब्राह्मण जानते हैं; क्योंकि जो जानने योग्य है, वह सब इस ओंकार-रूप वेद से ही जाना जा सकता है।बृहदारण्यकोपनिषद 5.1.
छान्दोग्योपनिषद्  तत् त्वम् असि or तत्त्वमसि
  
Chandogya Upanishad 6.8.7

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