Wednesday, July 4, 2012

औषधीय धान

nandini.khare
-हमारे देश के उन क्षेत्रों मे जहाँ धान की उत्पत्ति हुयी है आज भी सैकड़ों किस्म के औषधीय धान किसानों के पास हैं। बहुत से पारम्परिक चिकित्सक आज भी साधारण और जटिल दोनो ही प्रकार के रोगों की चिकित्सा मे इसका प्रयोग कर रहे हैं।श्री पंकज अवधिया जी ने इस विषय पर सबसे अधिक शोध आलेख लिखे है . पतंजलि योग पीठ में भी कृषि वैज्ञानिक श्री देविंदर शर्मा जी के मार्ग दर्शन में जो जैविक खेती का मॉडल तैयार किया जा रहा है वहां औषधीय गुणों वाले धान उगाये जा रहे है और जनता को विभिन्न रोगों से मुक्ति पाने के लिए उपलब्ध कराये जायेंगे .
--वात रोगों से प्रभावित रोगियो को गठुवन नामक औषधीय धान के उपयोग की सलाह दी जाती है .
--श्वाँस रोगो की चिकित्सा मे सहायक उपचार के रूप मे रोगी को नागकेसर नामक औषधीय धान प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। आम तौर पर गरम भात के साथ जंगली हल्दी चूर्ण के रूप मे खाने को कहा जाता है।

--करहनी नामक औषधीय धान का प्रयोग लकवा (पैरालीसिस) के रोगियो के लिये हितकर माना जाता है।

--नवजात शिशुओ को लाइचा नामक रोग से बचाने के लिये लाइचा नामक औषधीय धान के प्रयोग की सलाह माताओं को दी जाती है।

--इसी तरह नवजात शिशुओं मे छोटे फोड़ों को ठीक करने के लिये माताओ को आलचा नामक औषधीय धान के उपयोग की राय दी जाती है।

--प्रसव के बाद नयी ऊर्जा के लिये महराजी नामक धान माताओं के लिये उपयोगी होता है।

--कंठी बाँको और उडन पखेरु जैसे नाना प्रकार के औषधीय धानों का मधुमेह मे प्रयोगहोता है .

--कैसर और हृदय रोगों पर भी धान के औषधीय गुणों का प्रयोग किया जा रहा है .

--डुमरियागंज क्षेत्र का इनावर और लेवड़ ताल तिन्नी के चावल के लिए देशभर में प्रसिद्ध है।तिन्नी के चावल में आयरन की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जो शरीर में हेमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। इन्हीं खूबियों के कारण इस चावल का प्रयोग दवा बनाने में किया जाता है। आमतौर पर तिन्नी के चावल की खेती नहीं की जाती है। यह चावल बडे़-बडे़ तालों में खुद उगता है। जिले का इनावर और लेवड़ताल भी उसी में से एक है। यहां भारी मात्रा में तिन्नी के चावल की पैदावार होती है। एक हजार बीघों से अधिक क्षेत्रफल में फैले इस इस ताल में उगने वाले तिन्नी से इनावर और लेवड़ ताल के किनारे बसे भड़रिया, उजैनिया, मल्हवार, चिताही, सिकटा, फलफली, लोहरौला, लेवड़ी, सोहना, कटरिया बाबू गांवों के दर्जनों किसान लाभान्वित होते हैं। सनातन धर्म में खास महत्व रखने वाले इस चावल का उपयोग पूजा-पाठ और व्रत में लोग फलाहार के रूप में करते हैं।

--चावल के अलावा धान के पौधो मे अन्य भागो मे भी औषधीय गुण होते हैं । कालीमूंछ नामक औषधीय धान के पूरे पौधे से तैयार किया गया सत्व त्वचा रोगों को ठीक करता है। बायसूर नामक औषधीय धान की भूसी को जलाकर धुंए को सूंघने से माइग्रेन मे लाभ होता है।

--पशु चिकित्सा मे भी औषधीय धान का प्रयोग देहाती इलाको मे होता है। गाय के जरायु (प्लेसेंटा) को बाहर निकलने से रोकने के लिये प्रसव के बाद अलसी और गुड़ के साथ भेजरी नामक औषधीय धान खिलाया जाता है।

--प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथो मे साठिया नामक औषधीय धान का वर्णन मिलता है। साठिया माने साठ दिन मे पकने वाला धान। पूरे देश मे साठ दिन में पकने वाली बहुत सी औषधीय धान की किस्में है पर सही नाम न लिखे होने के कारण ग्रंथो पर आधारित चिकित्सा करने वाले विशेषज्ञो को परेशानी होती है।
--सबसे जरुरी तो यह है कि औषधीय धान को संरक्षित करने के कार्य शुरु हों और इसके विषय मे जानकारी रखने वालों को सम्मानित कर उनसे इन्हे बचाने के गुर सीखे जायें । आज रासायनिक खेती के युग में हम चावल का स्वाद भूल चुके हैं । हमे पतले और सुगन्ध वाले चावल चाहियें , भले ही उसमे बिल्कुल भी औषधीय गुण न हों ।
- Nandini Khare
https://www.facebook.com/nandini.khare.1
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