Saturday, November 22, 2014

बढ़ो बढ़ो बढे चलो

रक्त में उबाल हो, क्रोध की मशाल हो...... !धड़कने भड़क रही, जैसे कि भूचाल हो ...!!
माँ भारती पुकारती, कहाँ पे मेरे लाल हो .....!यदि मेरा ख्याल हो, न द्वंद न सवाल हो....... !!
रक्त से करो श्रृंगार, आँचल ये मेरा लाल हो .....!विजयी तुम्हारा भाल, और शत्रु का कपाल हो .....!!
असुरजनों का अंत हो, हों तो मात्र संत हो ......!धर्म हो सुपंथ हो, सृजन हो न कि अंत हो .....!!
उठो उठो बढ़ो बढ़ो, बढ़ो बढ़ो बढे चलो........ !लगा लो मृत्यु कंठ से, लौह में ढले चलो .......!!
विजय की भोर हो सदा, ना हार की निशीथ हो ....!ह्रदय में एक भाव हो कि, धर्म की ही जीत हो .....!

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