Friday, July 18, 2014

कर्म का फल ,कर्म के परिणाम व प्रभाव

प्राय: सामान्य व्यक्ति सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण कर्म का फल ही मान लेते हैं जबकि वस्तु स्थिति यह है कि मनुष्य को कर्म के फल के रूप में तो सुख दु:ख आदि मिलते हैं।
     किन्तु कर्म के परिणाम व प्रभाव के रूप में भी सुख-दु:ख की प्राप्ति होती है। 
अपने कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी सुख-दु:ख की प्राप्ति होती है तथा दूसरे द्वारा किये जाने वाले कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी सुख-दु:ख की प्राप्ति होती है। 
1. कर्म का फल:-
  कर्म पूरा हो जाने पर, कर्म के अनुरूप, अच्छे या बुरे कर्म के कर्ता को जो न्यायपूर्वक, न कम न अधिक, र्इश्वर, राजा, गुरू, माता-पिता, स्वामी आदि के द्वारा सुख-दु:ख, या सुख-दु:ख को प्राप्त करने के साधन प्रदान करना कर्म का फल कहलाता है।
   
2. कर्म का परिणाम:-
  क्रिया करने के तत्काल पश्चात की जो प्रतिक्रिया है, उसे कर्म का परिणाम कहते हैं। जिस व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित क्रिया की होती है कर्म का परिणाम उसी व्यक्ति या वस्तु पर होता है।
eg 
चर्बी मिश्रित नकली घी के विकृत हो जाने पर खाने वाले सैकड़ों-हजारों व्यक्ति रोगी हो गये, अन्धे हो गए। यह घी विक्रेता के मिलावट का परिणाम है 
3. कर्म का प्रभाव:-
  किसी क्रिया, उसके परिणाम या फल को जानकर अपने पर या दूसरों पर जो मानसिक सुख-दु:ख, भय, चिन्ता, शोक आदि असर होता है। उसे कर्म का प्रभाव कहते हैं।
 जब तक सम्बन्धित व्यक्ति को क्रियादि का ज्ञान नहीं होगा तब तक उस पर कोर्इ प्रभाव नहीं होगा।





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