Tuesday, January 28, 2014

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता ‍गीता-सार Gita in nutshell अध्याय 5 कर्मसंन्यासयोग

        कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते

    कर्म संन्यास से कर्मयोग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है

  The Supreme Lord said: The path of Self-knowledge (Karm-samnyaas) and the path of selfless service (KarmaYog, Seva) both lead to the supreme goal. But, of the two, KarmaYog is approachable hence superior to Karm-samnyaas. (5.02)

जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी पुरुष सुखपूर्वक संसार बंधन से मुक्त हो जाता है

अज्ञान द्वारा ज्ञान ढँका हुआ है

         ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।
          तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्‌ ॥

  परन्तु जिनका वह अज्ञान परमात्मा के तत्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दघन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है॥16॥Transcendental knowledge destroys the ignorance of the Self and reveals the Supreme just as the sun reveals the beauty of objects of the world. (5.16)
    शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्‌ ।
    कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥

 जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है॥23॥One who is able to withstand the impulse of lust and anger before death is a yogi, and a happy person. (5.23)
       विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥
      जो  इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह सदा मुक्त ही है
    Who desire to be free from fear and anger, he is always free

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