Sunday, January 26, 2014

थक मत लगा रह....

राजा खटवांग ने एक मुहूर्त में प्रभु का साक्षात्कार कर लिया। राजा जनक ने घोड़े की रकाब में पैर डालते डालते प्रभु का अनुभव कर लिया। शुकदेवजी महाराज ने इक्कीस दिन में आत्म-साक्षात्कार कर लिया। राजा परीक्षित को कथा-श्रवण करते-करते   सातवें दिन पूर्णता प्राप्त हो गई।

अधिकारी जीव को पाँच, सात, दस दिन में, महीने दो महीने में, साल दो साल में, दस साल में भी, अरे पचास साल तो क्या पचास जिन्दगियाँ दाँव पर लगाने के बाद भी अनन्त ब्रह्मण्ड के नायक प्रभु का अनुभव होता है तो सौदा सस्ता है।
तू लगा रह। थक मत। लगा रह.... लगा रह.....। माप-तौल मत कर। पीछे कितना अन्तर काट कर आया इसकी चिन्ता मत कर। आगे कितना बाकी है यह देख ले। जितना चल लिया वह तेरा हो गया।.............................

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