Thursday, August 1, 2013

कबीर के दोहे 6 kabir

60) कबीरा मन पंछी भया, भये ते बाहर जाय। जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय।61) कह कबीर यह क्यों मिटैं, चारों बाधक रोगतीरथ गये ते एक फल,सन्त मिले फल चार सत्गुरू मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार62) माया मरी ना मन मारा , मर मर गए शरीर ,आशा तृष्णा ना मरी ,कह गए दास कबीरkabir on circumcision63) जो तू बांभन बभनी को जाया। और राह दै काहै न आया।।जो तूँ तुरक तुरकिनि को जाया। पेटहिं काहे न सुनति कराया।।
64) निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छुवाय बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय...............65) सबद बराबर धन नहीं, जो कोइ जाणे बोल हीरा तो दामै मिले, सबद ही मोल न तोल।66)कबीर: कथनी थोथी जगत में, करनी उत्तम सार कहत कबीर करनी सफल, उतरे मंजिल पार।
67)
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥68)घट का परदा खोलकर,सन्मुख दे दीदार। बाल सनेही साँइयाँ,आवा अन्त का यार॥69)हंसा बगुला एकसा, मानसरोवर माहिं ,बगा ढूँढोरे मछरी, हंसा मोती खांहि ।kabir on circumcisionजो तू बांभन बभनी को जाया। और राह दै काहै न आया।। जो तूँ तुरक तुरकिनि को जाया। पेटहिं काहे न सुनति कराया।।

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