Monday, March 11, 2013

कबीर के दोहे -4

37)  साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

38) झूठे गुर के पक्ष को, तजत न कीजे बार , ज्ञान न पावै सबद का, भटके बारंबार 39) उत्तम विद्या लीजिये जदपि नीच पे होय। परो अपावन ठौर में कंचन तजत न कोय।। 40) हिन्दू कहे राम मोहि प्यारा, तुरक कहे रहिमाना आपस में दोउ लरि लरि मुए, मरम न कोई जाना। 41) चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह 42) कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय। ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।। 43) साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय | सार सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय। 44) तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। 45) ऊंचे पानी न टिकै, नीचे ही ठहराय नीचा है सो भर पिए, ऊंचा प्यासा जाय 46) जग में बैरी कोउ नहीं, जो मन सीतल होय | इस आपा को डारि दे, दया कर सब कोय
47) कबीर कुतिया राम की मोतिया मेरो नाम
गले राम की जेवड़ी जित खिचे तित जाऊ

48) कबीर  कुत्ता मे  राम का  मोति मेरा  नाम
 गले राम की जेवड़ी जित खिचे तित जाऊ

sharnagati complete surrender  to almighty 


49)कबीर मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर

 पीछे पीछे हरि फिरै कहत कबीर कबीर

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