current political affairs, Hinduism, Hindu philosophy ,Reforms, Ideology of Bharat Swabhiman Andolan
Monday, May 27, 2013
Haresh Raichura: Understanding Criminal Justice (Part 18) Why poor ...
Haresh Raichura: Understanding Criminal Justice (Part 18) Why poor ...: In most criminal cases, Court fees are not levied. And yet, some of our laws are not consistent with International Legal Treaties which Indi...
Sunday, May 26, 2013
અડધી રાતલડીએ મને રે જગાડી
સ્વર – મુકેશ, ઉષા મંગેશકર
સંગીત – દિલીપ ધોળકિયા
ગુજરાતી ફિલ્મ – મેના ગુર્જરી
for lyrics click here
for video click http://www.youtube.com/watch?v=lZqn1NqQndA
સંગીત – દિલીપ ધોળકિયા
ગુજરાતી ફિલ્મ – મેના ગુર્જરી
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अर्वाचीन युग में माता पिता की सेवा
जयादातर बुजुगो की यही फ़रयाद है की बच्चे उनकी सेवा नहीं करते,या करेंगे की नहि । माबाप को घर से निकाल ने वाले बच्चे भी है,पर जयादा तर माबाप घर में ही उपेक्षा सेह्कर अपने दिन पुरे करने को मजबूर ।
प्रमुख कारन कुछ दयाको से अपनाई गयी पश्चिम के देशो में निष्फल रही नयी कुटुम्भ वेवस्था है। पर सही कारन भारतीय समाज का नयी फॅमिली सिस्टम की शुरुआत करने मै नाकामी है। हमे एक मोर्डेन फॅमिली सिस्टम बंनानी होगी जिस में घर के सदास्य भले एक दुसरे से दूर रहते हो पर उनके सम्बध मजबूत हो
नहीं तो बड़ी संख्या में ओल्ड ऐज होम बनाने होंगे और माता पिता के आशीर्वाद से वाचित रहेंगे ।
यदि इस नयी फॅमिली में भी नयी पीढ़ी अपने मातापिता की सेवा इस उद्देश्य से करे की एक तो यह उन का फ़र्ज़ है और इस से उनके बच्चे में यह संस्कार का सिंचन होगा और यह परपरा पुनः स्थापित होगी ।
माता पिता की सेवा इसलिए नहीं करनी है की उन्होंने हमे पाल पोष कर बड़ा किया ,यह तो स्वार्थी लेन देन होगी ,इससे एक कर्त्तव्य ही समाज कर ही करना होगा । यही मनुष्य और अन्य प्राणियो में फरक है ।
प्रमुख कारन कुछ दयाको से अपनाई गयी पश्चिम के देशो में निष्फल रही नयी कुटुम्भ वेवस्था है। पर सही कारन भारतीय समाज का नयी फॅमिली सिस्टम की शुरुआत करने मै नाकामी है। हमे एक मोर्डेन फॅमिली सिस्टम बंनानी होगी जिस में घर के सदास्य भले एक दुसरे से दूर रहते हो पर उनके सम्बध मजबूत हो
नहीं तो बड़ी संख्या में ओल्ड ऐज होम बनाने होंगे और माता पिता के आशीर्वाद से वाचित रहेंगे ।
यदि इस नयी फॅमिली में भी नयी पीढ़ी अपने मातापिता की सेवा इस उद्देश्य से करे की एक तो यह उन का फ़र्ज़ है और इस से उनके बच्चे में यह संस्कार का सिंचन होगा और यह परपरा पुनः स्थापित होगी ।
माता पिता की सेवा इसलिए नहीं करनी है की उन्होंने हमे पाल पोष कर बड़ा किया ,यह तो स्वार्थी लेन देन होगी ,इससे एक कर्त्तव्य ही समाज कर ही करना होगा । यही मनुष्य और अन्य प्राणियो में फरक है ।
सनातन तत्त्व ज्ञान
इश्वर निर्गुण, निराकार है.
उसके चैतन्य स्वरुप में (पुरुष) जब द्वैत भाव प्रकट होता है, तब सृष्टि की रचना होती है (प्रकृति). इस द्वैत भाव के निर्माण का मूल जो "संकल्प" है उसके चलते इस दृश्य सृष्टि में काल के सबसे विराट रूप को "कल्प" कहते हैं.
सत्य में इश्वर न सृष्टि का निर्माण करता है, न पालन, और न विनाश. यह ३ भिन्न क्रियाएं अनुभव होने का कारण अविद्या है. जो यह अविद्या नहीं रही, तो हर प्रकार की भिन्नता और द्वैत से मुक्ति निश्चित है.
सर्व प्रथम हम जीव को समझ लें. हमारा यह दृश्य शरीर ४ भागों में विभाजित है -
स्थूल देह, सूक्ष्म देह, कारण देह, महाकारण देह.
स्थूल देह हड्डी और मांस का बना है.
उसके भीतर सूक्ष्म देह है, जो अन्तःकारण चतुष्टय (मन, बुद्धि,चित , अहंकार) से बना है. इसी में हमारे प्रारब्ध कर्म का भी वास है. पूर्व जन्म के कर्मों में जिन कर्मों का फल इस जन्म में भोगना पड़ता है वे प्रारब्ध कर्म कहे जाते हैं
उसके भीतर कारण देह है, जिसमे अतृप्त वासना तथा संचित कर्मों का निवास है. पूर्व जन्म में किये गये कर्म संचित कर्म कहे जाते हैं
इसी कारण देह के चलते जीव का जन्मा होता है (इसीलिए नाम है "कारण" देह, जो जन्मा तथा मृत्यु का कारण हो).
अंततः उसके परे जो है वह महाकारण देह है. यह सर्वव्यापी, चैतान्यमै है. इन सबमे से यदि हम स्थूल देह को निकाल दे, तो जो बचता है वह जीवात्मा है.
उस जीवात्मा से यदि सूक्ष्म देह मुक्त हो गया (योग साधना से जब साधक उन्मनी अवस्था तक पहुंचता है, तब उसका मन नाश हो जाता है और कैवल्य समाधी में केवल महाकारण देह का अस्तित्व होता है, जिसे ब्रह्मा-साक्षात्कार कहते हैं)
तोह जो महाकारण देह बचेगा वह ब्रह्मण है. ज्यों की इस महाकारण देह से अविद्या का आवरण अब मिट चूका है, वोह परब्रह्म स्वरुप है. येही इश्वर भी है.
ध्यान रहे, यह महाकारण देह हम सभी में एक ही है, क्यूँ की यह इश्वर है. और इसी को ज्ञानी जन सबमे इश्वर का निवास है के भाव से कहते है.
रहा प्रश्न भेद क्यूँ है, तोह भेद कहाँ है? महाकारण में द्वैत भाव का प्राकट्य कारण देह को जगाता है, जिसमे वासना के चलते सूक्ष्म देह अस्तित्व में आता है, जो जन्मा लेने हेतु किसी योनी के स्थूल देह को अपना वाहन बनता है. येही प्रक्रिया यदि उलटी दोहराई जाये तोह वह मुक्ति का मार्ग भी है.
इन सबमें केवल महाकारण अथवा ब्रह्मण स्थायी है, बाकि सरे देह नश्वर हैइसीलिए उपनिषदों में यह भी कहा गया है --- "ब्रह्मा सत्यम, जगत मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः"
-- अर्थात, "ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है, तथा जीव-ब्रह्म में कोई भेद नहीं है".
आत्मन वह कारण देह है जो स्थूल देह धारण कर जीवात्मा बन जाता है. इस आत्मन से (कारण देह से) जब वासनाएं नष्ट हो जाती है, तो वह कारण देह महाकारण में विलीन हो जाता है (जीव का ब्रह्म में लय).
वासना ही जन्मा-मृत्यु के निरंतर चक्र का कारण है. यदि यह वासना अपवित्र है, राजसी अथवा तामसी है तो जन्म पाप योनी या पशु योनी में होगा.
यदि वासना शुद्ध है, पवित्र है, सात्विक है, तो जन्म पावन योनी में होगा (जैसे की धार्मिक मनुष्य के घर में). यदि इस जन्म को सत्य की खोज में तथा इश्वर भक्ति में लगाया जाये, यदि यह जीवन एक मुमुक्षु (मोक्ष को चाहने वाला) साधक बनकर व्यतीत किया जाये, और मृत्यु के समय केवल मोक्ष की अभिलाषा हो तो मोक्ष भी मिल सकता है.
जीवन्मुक्ति भी संभव है.परन्तु अंत में इस मोक्ष की वासना को भी साधना की अग्नि में जला देना आवश्यक है, ठीक उसही प्रकार जैसे किसी के अंत्यसंस्कार के समय अग्नि प्रदान करने वाली लकड़ी को भी चिता में जलाया जाता है.
बंधन हमारा बनाया हुआ है. सत्य में ना बंधन है ना मोक्ष है. केवल सत चित और आनंद मय ब्रह्मण है. परन्तु अविद्या के कारण हमें बंधन सत्य होने का आभास होता है. ठीक उसही प्रकार जिस प्रकार अन्धकार में एक रस्सी भी सर्प होने का आभास होता है और हमें डरा सकती है.
याद रखिये --- "मन एव मनुष्याणं कारणं बंधा मोक्षयोहो" -- "यह मन ही हमारे बंधन तथा मोक्ष का कारण है" माया अथवा अविद्या का कोई अपना अस्तित्व नहीं होता.
केवल विद्या के अभाव को अविद्या कहते हैं. उस अविद्या के चलते निर्माण होने वाले भ्रम को माया कहते हैं. माया जीव को बंधन में जकडे रखती हैं. परन्तु माया नाम की कोई चीज़ यह काम नहीं करती. केवल जीव की अविद्या उसे माया के प्रभावे में बंधने पर विवश कर देती है.
यदि जीव चाहे तोह इशी क्षण प्रत्यक्ष अनुभूति से इस बंधन से मुक्त हो परमानन्द का अनुभव कर सकता है.
- by kroihit99
अमृत्व के लिए आत्मज्ञान होना अनिवार्य है; क्योंकि आत्मा द्वारा ही आत्मा को ग्रहण किया जा सकता है। 'आत्म-दर्शन' के लिए श्रवण, मनन औरज्ञान की आवश्यकता होती है। कोई किसी को आत्म-दर्शन नहीं करा सकता। इसका अनुभव स्वयं ही अपनी आत्मा में करना होता है।' जिस प्रकार जल में घुले हुए नमक को नहीं निकाला जा सकता,उसी प्रकार उस महाभूत, अन्तहीन, विज्ञानघन परमात्मा में सभी आत्मांए समाकर विलुप्त होजाती हैं जब तक 'द्वैत' का भाव बना रहता है, तब तक वह परमात्मा दूरी बनाये रखता है, किन्तु 'अद्वैत' भाव के आते ही आत्मा, परमात्मा में लीन हो जाता है,अर्थात उसे अपनी आत्मा से ही जानने का प्रयत्न करो।'
उसके चैतन्य स्वरुप में (पुरुष) जब द्वैत भाव प्रकट होता है, तब सृष्टि की रचना होती है (प्रकृति). इस द्वैत भाव के निर्माण का मूल जो "संकल्प" है उसके चलते इस दृश्य सृष्टि में काल के सबसे विराट रूप को "कल्प" कहते हैं.
सत्य में इश्वर न सृष्टि का निर्माण करता है, न पालन, और न विनाश. यह ३ भिन्न क्रियाएं अनुभव होने का कारण अविद्या है. जो यह अविद्या नहीं रही, तो हर प्रकार की भिन्नता और द्वैत से मुक्ति निश्चित है.
सर्व प्रथम हम जीव को समझ लें. हमारा यह दृश्य शरीर ४ भागों में विभाजित है -
स्थूल देह, सूक्ष्म देह, कारण देह, महाकारण देह.
स्थूल देह हड्डी और मांस का बना है.
उसके भीतर सूक्ष्म देह है, जो अन्तःकारण चतुष्टय (मन, बुद्धि,चित , अहंकार) से बना है. इसी में हमारे प्रारब्ध कर्म का भी वास है. पूर्व जन्म के कर्मों में जिन कर्मों का फल इस जन्म में भोगना पड़ता है वे प्रारब्ध कर्म कहे जाते हैं
उसके भीतर कारण देह है, जिसमे अतृप्त वासना तथा संचित कर्मों का निवास है. पूर्व जन्म में किये गये कर्म संचित कर्म कहे जाते हैं
इसी कारण देह के चलते जीव का जन्मा होता है (इसीलिए नाम है "कारण" देह, जो जन्मा तथा मृत्यु का कारण हो).
अंततः उसके परे जो है वह महाकारण देह है. यह सर्वव्यापी, चैतान्यमै है. इन सबमे से यदि हम स्थूल देह को निकाल दे, तो जो बचता है वह जीवात्मा है.
उस जीवात्मा से यदि सूक्ष्म देह मुक्त हो गया (योग साधना से जब साधक उन्मनी अवस्था तक पहुंचता है, तब उसका मन नाश हो जाता है और कैवल्य समाधी में केवल महाकारण देह का अस्तित्व होता है, जिसे ब्रह्मा-साक्षात्कार कहते हैं)
तोह जो महाकारण देह बचेगा वह ब्रह्मण है. ज्यों की इस महाकारण देह से अविद्या का आवरण अब मिट चूका है, वोह परब्रह्म स्वरुप है. येही इश्वर भी है.
ध्यान रहे, यह महाकारण देह हम सभी में एक ही है, क्यूँ की यह इश्वर है. और इसी को ज्ञानी जन सबमे इश्वर का निवास है के भाव से कहते है.
रहा प्रश्न भेद क्यूँ है, तोह भेद कहाँ है? महाकारण में द्वैत भाव का प्राकट्य कारण देह को जगाता है, जिसमे वासना के चलते सूक्ष्म देह अस्तित्व में आता है, जो जन्मा लेने हेतु किसी योनी के स्थूल देह को अपना वाहन बनता है. येही प्रक्रिया यदि उलटी दोहराई जाये तोह वह मुक्ति का मार्ग भी है.
इन सबमें केवल महाकारण अथवा ब्रह्मण स्थायी है, बाकि सरे देह नश्वर हैइसीलिए उपनिषदों में यह भी कहा गया है --- "ब्रह्मा सत्यम, जगत मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः"
-- अर्थात, "ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है, तथा जीव-ब्रह्म में कोई भेद नहीं है".
आत्मन वह कारण देह है जो स्थूल देह धारण कर जीवात्मा बन जाता है. इस आत्मन से (कारण देह से) जब वासनाएं नष्ट हो जाती है, तो वह कारण देह महाकारण में विलीन हो जाता है (जीव का ब्रह्म में लय).
वासना ही जन्मा-मृत्यु के निरंतर चक्र का कारण है. यदि यह वासना अपवित्र है, राजसी अथवा तामसी है तो जन्म पाप योनी या पशु योनी में होगा.
यदि वासना शुद्ध है, पवित्र है, सात्विक है, तो जन्म पावन योनी में होगा (जैसे की धार्मिक मनुष्य के घर में). यदि इस जन्म को सत्य की खोज में तथा इश्वर भक्ति में लगाया जाये, यदि यह जीवन एक मुमुक्षु (मोक्ष को चाहने वाला) साधक बनकर व्यतीत किया जाये, और मृत्यु के समय केवल मोक्ष की अभिलाषा हो तो मोक्ष भी मिल सकता है.
जीवन्मुक्ति भी संभव है.परन्तु अंत में इस मोक्ष की वासना को भी साधना की अग्नि में जला देना आवश्यक है, ठीक उसही प्रकार जैसे किसी के अंत्यसंस्कार के समय अग्नि प्रदान करने वाली लकड़ी को भी चिता में जलाया जाता है.
बंधन हमारा बनाया हुआ है. सत्य में ना बंधन है ना मोक्ष है. केवल सत चित और आनंद मय ब्रह्मण है. परन्तु अविद्या के कारण हमें बंधन सत्य होने का आभास होता है. ठीक उसही प्रकार जिस प्रकार अन्धकार में एक रस्सी भी सर्प होने का आभास होता है और हमें डरा सकती है.
याद रखिये --- "मन एव मनुष्याणं कारणं बंधा मोक्षयोहो" -- "यह मन ही हमारे बंधन तथा मोक्ष का कारण है" माया अथवा अविद्या का कोई अपना अस्तित्व नहीं होता.
केवल विद्या के अभाव को अविद्या कहते हैं. उस अविद्या के चलते निर्माण होने वाले भ्रम को माया कहते हैं. माया जीव को बंधन में जकडे रखती हैं. परन्तु माया नाम की कोई चीज़ यह काम नहीं करती. केवल जीव की अविद्या उसे माया के प्रभावे में बंधने पर विवश कर देती है.
यदि जीव चाहे तोह इशी क्षण प्रत्यक्ष अनुभूति से इस बंधन से मुक्त हो परमानन्द का अनुभव कर सकता है.
- by kroihit99
अमृत्व के लिए आत्मज्ञान होना अनिवार्य है; क्योंकि आत्मा द्वारा ही आत्मा को ग्रहण किया जा सकता है। 'आत्म-दर्शन' के लिए श्रवण, मनन औरज्ञान की आवश्यकता होती है। कोई किसी को आत्म-दर्शन नहीं करा सकता। इसका अनुभव स्वयं ही अपनी आत्मा में करना होता है।' जिस प्रकार जल में घुले हुए नमक को नहीं निकाला जा सकता,उसी प्रकार उस महाभूत, अन्तहीन, विज्ञानघन परमात्मा में सभी आत्मांए समाकर विलुप्त होजाती हैं जब तक 'द्वैत' का भाव बना रहता है, तब तक वह परमात्मा दूरी बनाये रखता है, किन्तु 'अद्वैत' भाव के आते ही आत्मा, परमात्मा में लीन हो जाता है,अर्थात उसे अपनी आत्मा से ही जानने का प्रयत्न करो।'
Thursday, May 23, 2013
UPA-CONGRESS is going to lose 2014 - poll
all 3 recent poll says more or less same thing upa is losing badly but NDA-BJP will may not winning that much.
HT-Cvoters poll clearly says with modi as pm candidate NDA will get 220 & Jayalalitha will score 30 ,.So another 21 can be arranged & still many months to go.
hardly any body surprise by see poll results which tilted in favor of modi so congi journos jumps to says but with modi nda cant get allies
did ABV who is showered by praises by liberals got support from anybody when he formed 13 days govt.
Did ABV ever won state elections by his own charisma or even in his home state UP then why they are raising bar for Modi atleast he win guj
HT-Cvoters poll clearly says with modi as pm candidate NDA will get 220 & Jayalalitha will score 30 ,.So another 21 can be arranged & still many months to go.
hardly any body surprise by see poll results which tilted in favor of modi so congi journos jumps to says but with modi nda cant get allies
did ABV who is showered by praises by liberals got support from anybody when he formed 13 days govt.
Did ABV ever won state elections by his own charisma or even in his home state UP then why they are raising bar for Modi atleast he win guj
Wednesday, May 22, 2013
માંડી મને દૈવત દેજે - modi's poem on MAA [his own Ma or Bharat Mata} 4
માંડી મને દૈવત દેજે
હું તો કાળજાની કોટડી મા બેઠો છુ માં, માં મને કેહ્જે તું ખમાં ખમાં
મને દૈવત દેજે મને દેજે તું સત ,કે રાખું હું પથ , મારું એકજ આ વ્રત
મને તારી એક ચાહત મને તારી રાહત હૂ તો ...
રાગ ને મેં ત્યાગ્યો વૈરાગ્ય મેં માંગ્યો ,નથી ફુલો ની માયા નથી સૌરભ ની છાયાં
મારો સુરા નો પંથ છે તારું વહાલ તો અંનત છે મારા ભવ ના સાગર માં એક તારો છે ભાવ
મારા ભવ ના સાગર માં એક તારી છે નાવ
દરિયો પણ કોઈ દિવસ ડુસકા ભરે ને ક્યારે પણ કદીયે બોલે નહિ અરે
બાગ ને બગીચા કદી સુકાયી જય ને ફૂલડાં આપ મેળે કરમાંઈ જય
માળી પણ જયારે શરમાય જાય ,ત્યારે તું અસુડા સીચી દેજે
બાગ ને બગીચા કદી સુકાયી જય ને ફૂલડાં આપ મેળે કરમાંઈ જય
માળી પણ જયારે શરમાય જાય ,ત્યારે તું અસુડા સીચી દેજે
અવગુણ પર આંખ તારી મીચી દેજે
ફૂલ ના એક હાર ને એવો તું ગુથ કે એમાં થી પ્રગટી રહે ઈશ્વર નું રૂપ
ફૂલ ના એક હાર ને એવો તું ગુથ કે એમાં થી પ્રગટી રહે ઈશ્વર નું રૂપ
નરેન્દ્ર મોદી ની કવિતા 3 with video in voice of parthiv gohil
અંતમાં આરંભ અને આરંભમાં અંત..
પાનખરના હૈયામાં ટહુકે વસંત..
પાનખરના હૈયામાં ટહુકે વસંત..
સોળ વર્ષની વય, ક્યાંક કોયલનો લય,
કેસુડાંનો કોના પર ઉછળે પ્રણય ???
ભલે લાગે છે કે રંક પણ ભીતર શ્રીમંત..
પાનખરના હૈયામાં ટહુકે વસંત..
આજે તો વનમાં કોના વિવાહ,
એક એક વૃક્ષમાં પ્રકટે દીવા..
આશિર્વાદ આપવા આવે છે સંત..પાનખરના હૈયામાં ટહુકે વસંત..
sung by parthiv gohel
sung by parthiv gohel
નરેન્દ્ર મોદી ની કવિતા 2 my fav નિખાલસ
નિખાલસ
પ્રારબ્ધને અહીંયાં ગાંઠે કોણ?
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
હું તેજ ઉછીનું લઉં નહીં
હું જાતે બળતું ફાનસ છું.
ઝળાહળાનો મોહતાજ નથી
મને મારું અજવાળું પૂરતું છે
અંધારાના વમળને કાપે
કમળ તેજતો સ્ફુરતું છે
ધુમ્મસમાં મને રસ નથી
હું ખુલ્લો અને નિખાલસ છું
પ્રારબ્ધને અહીંયાં ગાઠે કોણ?
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
કુંડળીને વળગવું ગમે નહીં
ને ગ્રહો કને શિર નમે નહીં
કાયરોની શતરંજ પર જીવ
સોગઠાબાજી રમે નહીં
હું પોતે જ મારો વંશજ છું
હું પોતે મારો વારસ છું
પ્રારબ્ધને અહીંયાં ગાંઠે કોણ?
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
હું તેજ ઉછીનું લઉં નહીં
હું જાતે બળતું ફાનસ છું.
ઝળાહળાનો મોહતાજ નથી
મને મારું અજવાળું પૂરતું છે
અંધારાના વમળને કાપે
કમળ તેજતો સ્ફુરતું છે
ધુમ્મસમાં મને રસ નથી
હું ખુલ્લો અને નિખાલસ છું
પ્રારબ્ધને અહીંયાં ગાઠે કોણ?
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
કુંડળીને વળગવું ગમે નહીં
ને ગ્રહો કને શિર નમે નહીં
કાયરોની શતરંજ પર જીવ
સોગઠાબાજી રમે નહીં
હું પોતે જ મારો વંશજ છું
હું પોતે મારો વારસ છું
પ્રારબ્ધને અહીંયાં ગાંઠે કોણ?
હું પડકાર ઝીલનારો માણસ છું
-નરેન્દ્ર મોદી
નરેન્દ્ર મોદી ની કવિતા1
પૃથ્વી આ રમ્ય છે , આંખ આ ધન્ય છે.
લીલાછમ ઘાસ પર તડકો ઢોળાય અહીં
તડકાને
કેમે કરી ઝાલ્યો ઝલાય નહીં.
વ્યોમ તો ભવ્ય છે ,ને પૃથ્વી આ રમ્ય છે.
આભમાં
મેઘધનુષ મ્હોરતું, ફોરતું.
હવામાં રંગનાં વર્તુળો દોરતું.
કિયા ભવનું પુણ્ય છે ?!
જિંદગી ધન્ય છે, ધન્ય છે.
સમુદ્ર આ ઊછળે સાવ ઊંચે આભમાં,
કોણ જાણે
શું ભર્યું છે વાદળોના ગાભમાં !
સભર આ શૂન્ય છે.
પૃથ્વી આ રમ્ય
છે.
માનવીના મેળા સાથે મેળ આ મળતો રહ્યો,
ને અન્યના સંગાથમાં હું મને કળતો
રહ્યો.
આ બધું અનન્ય છે. ,ને કૈંક તો અગમ્ય છે.
ધન્ય ધન્ય ધન્ય છે. પૃથ્વી મારી રમ્ય છે.
તડકાને
કેમે કરી ઝાલ્યો ઝલાય નહીં.
વ્યોમ તો ભવ્ય છે ,ને પૃથ્વી આ રમ્ય છે.
આભમાં
મેઘધનુષ મ્હોરતું, ફોરતું.
હવામાં રંગનાં વર્તુળો દોરતું.
કિયા ભવનું પુણ્ય છે ?!
જિંદગી ધન્ય છે, ધન્ય છે.
સમુદ્ર આ ઊછળે સાવ ઊંચે આભમાં,
કોણ જાણે
શું ભર્યું છે વાદળોના ગાભમાં !
સભર આ શૂન્ય છે.
પૃથ્વી આ રમ્ય
છે.
માનવીના મેળા સાથે મેળ આ મળતો રહ્યો,
ને અન્યના સંગાથમાં હું મને કળતો
રહ્યો.
આ બધું અનન્ય છે. ,ને કૈંક તો અગમ્ય છે.
ધન્ય ધન્ય ધન્ય છે. પૃથ્વી મારી રમ્ય છે.
-નરેન્દ્ર મોદી.
Tuesday, May 21, 2013
શીખતા શીખવું
શીખતા શીખવું
શીખવાનું શું હોઈ છે અક્ષર ની ઓળખ - વાગલે -વાચન ગણન અને લેખન . હકીકત માં ,જોતા સાંભળતા શીખવાની વધારે જરૂર છે . યાની કે અવલોકન કરવું અને તેથીય વધારે અગત્યનું છે સમજવું . ખરા અર્થ માં સમજ્યા ત્યારેજ ગણાય કે તમે અનન્ય ને તે વાત સમજાવી શકો અથવા બીજા, વધારે કે ઓછા શબ્દો માં વ્યક્ત કરી શકો .
અવલોકન કરવાનું શીખવાડી શકાય ,શું જોવાનું છે તે પણ બતાવી શકાય .વાચી ને શીખવું પણ અત્યંત જરૂરી છે કારણ કે બધું જાતે જોવા નો મોકો બધાને ના મળે . વાંચીને સમજવા માં મન ની કલ્પના શક્તિ વધારે અગત્ય ની હોઈ છે
I hear and I forget. I see and I remember. I do and I understand. -Confucius
By three methods we may learn wisdom: First, by reflection, which is noblest; Second, by imitation, which is easiest; and third by experience, which is the bitterest. Confucius
શીખવાનું શું હોઈ છે અક્ષર ની ઓળખ - વાગલે -વાચન ગણન અને લેખન . હકીકત માં ,જોતા સાંભળતા શીખવાની વધારે જરૂર છે . યાની કે અવલોકન કરવું અને તેથીય વધારે અગત્યનું છે સમજવું . ખરા અર્થ માં સમજ્યા ત્યારેજ ગણાય કે તમે અનન્ય ને તે વાત સમજાવી શકો અથવા બીજા, વધારે કે ઓછા શબ્દો માં વ્યક્ત કરી શકો .
અવલોકન કરવાનું શીખવાડી શકાય ,શું જોવાનું છે તે પણ બતાવી શકાય .વાચી ને શીખવું પણ અત્યંત જરૂરી છે કારણ કે બધું જાતે જોવા નો મોકો બધાને ના મળે . વાંચીને સમજવા માં મન ની કલ્પના શક્તિ વધારે અગત્ય ની હોઈ છે
I hear and I forget. I see and I remember. I do and I understand. -Confucius
By three methods we may learn wisdom: First, by reflection, which is noblest; Second, by imitation, which is easiest; and third by experience, which is the bitterest. Confucius
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