जयादातर बुजुगो की यही फ़रयाद है की बच्चे उनकी सेवा नहीं करते,या करेंगे की नहि । माबाप को घर से निकाल ने वाले बच्चे भी है,पर जयादा तर माबाप घर में ही उपेक्षा सेह्कर अपने दिन पुरे करने को मजबूर ।
प्रमुख कारन कुछ दयाको से अपनाई गयी पश्चिम के देशो में निष्फल रही नयी कुटुम्भ वेवस्था है। पर सही कारन भारतीय समाज का नयी फॅमिली सिस्टम की शुरुआत करने मै नाकामी है। हमे एक मोर्डेन फॅमिली सिस्टम बंनानी होगी जिस में घर के सदास्य भले एक दुसरे से दूर रहते हो पर उनके सम्बध मजबूत हो
नहीं तो बड़ी संख्या में ओल्ड ऐज होम बनाने होंगे और माता पिता के आशीर्वाद से वाचित रहेंगे ।
यदि इस नयी फॅमिली में भी नयी पीढ़ी अपने मातापिता की सेवा इस उद्देश्य से करे की एक तो यह उन का फ़र्ज़ है और इस से उनके बच्चे में यह संस्कार का सिंचन होगा और यह परपरा पुनः स्थापित होगी ।
माता पिता की सेवा इसलिए नहीं करनी है की उन्होंने हमे पाल पोष कर बड़ा किया ,यह तो स्वार्थी लेन देन होगी ,इससे एक कर्त्तव्य ही समाज कर ही करना होगा । यही मनुष्य और अन्य प्राणियो में फरक है ।
प्रमुख कारन कुछ दयाको से अपनाई गयी पश्चिम के देशो में निष्फल रही नयी कुटुम्भ वेवस्था है। पर सही कारन भारतीय समाज का नयी फॅमिली सिस्टम की शुरुआत करने मै नाकामी है। हमे एक मोर्डेन फॅमिली सिस्टम बंनानी होगी जिस में घर के सदास्य भले एक दुसरे से दूर रहते हो पर उनके सम्बध मजबूत हो
नहीं तो बड़ी संख्या में ओल्ड ऐज होम बनाने होंगे और माता पिता के आशीर्वाद से वाचित रहेंगे ।
यदि इस नयी फॅमिली में भी नयी पीढ़ी अपने मातापिता की सेवा इस उद्देश्य से करे की एक तो यह उन का फ़र्ज़ है और इस से उनके बच्चे में यह संस्कार का सिंचन होगा और यह परपरा पुनः स्थापित होगी ।
माता पिता की सेवा इसलिए नहीं करनी है की उन्होंने हमे पाल पोष कर बड़ा किया ,यह तो स्वार्थी लेन देन होगी ,इससे एक कर्त्तव्य ही समाज कर ही करना होगा । यही मनुष्य और अन्य प्राणियो में फरक है ।
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