Thursday, April 7, 2016

कैसे मुझे तुम मिल गयी

कैसे मुझे तुम मिल गयी किस्मत पे आये न यकीन
 उतर आई झील में जैसे चाँद उतरता है कभी
 हौले हौले
धीरे से गुनगुनी धूप की तरह से तरन्नुम मैं तुम छूके मुझे गुजारी हो यु
देखु तुम्हे या मैं सुनु
तुम हो सुकून तुम हो जूनून
 क्यों पहले न आई तुम
मैं तो यह सोचता था के आज कल उपरवाले को फुर्सत नहीं
 फिर भी तुम्हे बनाके वह मेरी नज़र में चढ़ गया रुतबे मैं वह और बढ़ गया
बदले रास्ते झरने और नदी बदले दिप की टीम टीम छेड़े ज़िन्दगी धुन कोई नयी बदली बरखा की रिमझिम

बदलेंगी ऋतुएं अदा पर मैं रहूंगी सदा उसी तरह तेरी बाहों में बहे डालके हर लम्हा हर पल

जिंदगी सितार हो गई रिम झिम मल्हार हो गई मुझे आता नहीं किस्मत पे अपनी यकीन कैसे मुझको मिल गयी तुम

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