Sunday, January 12, 2014

तीन प्रकार के कर्म

|| कर्म का रहस्य ||
कर्म तीन प्रकार के बताये गए हैं : -
 [ १ ]
संचित - अनेक पूर्व जन्मों से लेकर अब तक किये गए संग्रहित कर्मों को संचित कर्म कहते हैं |
 [ २ ]
प्रारब्ध - अपार संचित कर्मों से , पुन्य - पाप के ढेर में से कुछ अंश लेकर जो शरीर बनता है , उसमें इस जन्म में भोगने वाले कर्म - फल , जो परिपक्व
होने पर फल के रूप में मनुष्य को प्राप्त होते हैं , उनको प्रारब्ध कहते हैं |
  इस प्रकार जब तक संचित कर्म शेष हैं , उनसे प्रारब्ध [ कर्म - फल ] बनता ही रहता है | अर्थात जब तक सारे संचित कर्म नष्ट नहीं हो जाते , मनुष्य की मुक्ति नहीं हो सकती | क्योंकि संचित से स्फुरणा , स्फुरणा से क्रियमाण [ नए किये जाने वाले कर्म ] और क्रियमाण से पुन: संचित तथा संचित के अंश से प्रारब्ध | इस प्रकार जीव कर्म - प्रवाह में बहता ही रहता है |
 [ ३ ]
क्रियमाण - मन वचन और शरीर से मनुष्य जो कुछ नए कर्म करता है , वह जब तक क्रिया रूप में रहता है , तब तक वह क्रियमाण कहलाता है और पुरा होते ही तत्काल संचित बन जाता है |
 जैसे नई कमाई करना क्रियमाण है और बैंक में जमा होते ही संचित हो जाता है |
 नए कर्म करने में , भगवान ने मनुष्य को स्वतंत्रता दी है | वह देवी संपदा का आश्रय भी ले सकता है और आसुरी का भी | 

प्रारब्ध - भोग : - जो संचित कर्म परिपक्व होकर फल देने को तैयार हैं ,उनका भोग शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होता है | स्वप्न में जो सुख , दु:ख आदि की अनुभूति होती है , वह मानसिक भोग है | दूसरे प्रकार का भोग ईष्ट , अनिष्ट और मिश्रित पदार्थों का प्राप्त होना है |
जैसे [ १ ] अनिच्छा से - दुर्घटना से टूट - फूट हो जाना , बिजली गिर जाना , घर की छत टूट पडना आदि दु:ख रूप से और राह चलते कोई कीमती [ हीरा , मोती , सोना ] चीज मिल जाना , जमीन में गडा धन मिल जाना आदि सुख रूप से प्रारब्ध - वश मिलता है |
 [ २ ] पर - इच्छा से - जो दूसरों की इच्छा से , कर्म से सुख - दु:ख रूप में मिलता है जैसे चोर , लुटेरे द्वारा हमला करना , सांप का काटना आदि दु:ख रूप में और आत्म - हत्या करने वाले को मित्र द्वारा बचा लेना , वसीयत से धन मिल जाना आदि सुख रूप में प्रारब्ध से मिलता है |
 [ ३ ] स्व - इच्छा से - जो कर्म स्त्री , पुत्र , धन आदि के संबंध में स्वयम के द्वारा किया जाता है , उसका सुख , दु:ख रूप में जो परिणाम मिलता है , उसे स्वेच्छा प्रारब्ध कहा जाता है |

No comments:

Post a Comment