Saturday, February 27, 2016

अगर तुम साथ हो

पल भर ठहर जाओ दिल ये संभल जाए कैसे तुम्हे रोका करूँ मेरी तरफ आता हर ग़म फिसल जाए
आँखों में तुम को भरुं बिन बोले बातें तुमसे करूँ ‘गर तुम साथ हो.. अगर तुम साथ हो
बहती रहती.. नहर नदिया सी तेरी दुनिया में मेरी दुनिया है तेरी चाहतों में में ढल जाती हूँ तेरी आदतों में ‘गर तुम साथ हो
तेरी नज़रों में है तेरे सपने तेरे सपनो में है नाराज़ी मुझे लगता है के बातें दिल की होती लफ़्ज़ों की धोखेबाज़ी
तुम साथ हो या न हो क्या फर्क है बेदर्द थी ज़िन्दगी बेदर्द है अगर तुम साथ हो
पलकें झपकते ही दिन ये निकल जाए बेठी बेठी भागी फिरूँ मेरी तरफ आता हर ग़म फिसल जाए
आँखों में तुम को भरुं बिन बोले बातें तुमसे करूँ ‘गर तुम साथ हो अगर तुम साथ हो

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