जिसकी रचना इतनी सुन्दर वोह कितना सुन्दर होगा
वोह कितना सुन्दर होगा
तुझे देखने को मैं क्या हर दर्पण तरस करता है
ज्यों तुलसी के बिरवा को हर आँगन तरस करता है
हर आँगन तरस करता है
आंग आंग तेरा रस कि गंगा रूप का वोह सागर होगा
जिसकी रचना इतनी सुन्दर वोह कितना सुन्दर होगा
वोह कितना सुन्दर होगा
राग रंग रस का संगम आधार तू प्रेम कहानी का
मेरे प्यासे मन में यूँ उतरी ज्यों रेत में झरना पानी का
ज्यों रेत में झरना पानी का
अपना रूप दिखने को तेरे रूप में खुद ईश्वर होगा
जिसकी रचना इतनी सुन्दर वोह कितना सुन्दर होगा
वोह कितना सुन्दर होगा
No comments:
Post a Comment