Monday, August 5, 2013

kabir

मारग चलतै जो गिरा, ताकै नाही दोस कहै कबीर बैठा रहै, ता सिर करड़ै कोस एक हमारी सीख सुन, जो तू हुआ सीख करूँ करूँ तो क्या कहै, किया है तो दीख प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। मैं मेरी सब जायेगी, तब आवैगा और जब यह निसचल होवेगा, तब आवैगा ठौर मैंने तो यह सोच कर तस्बीह ही तोड़ दी, क्या गिन गिन माँगू उससे जो बेहिसाब देता है। साधू भया तो क्या भया जो नहीं बोले बिचार हतै पराई आतमा जीभ लिये तलवार हीरा सोई सराहिये सहै घनन की चोट कपट कुरंगी मानवा परखत निकरा खोट मारग चलतै जो गिरा, ताकै नाही दोस कहै कबीर बैठा रहै, ता सिर करड़ै कोस

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